मुझे नहीं पता हम दोस्त कब हो गए?
हर सुख-दुःख में तुम, मेरे अपने हो गए
एक भूख थी तुमको, मुझे खुश देखने की
जब अपनी खुशियों को तुम खुद ही भूल गए
मैंने तुम्हारे लिए क्या किया?
जो हर वक्त तुम साथ हो
सिर्फ हँसी मज़ाक का दौर था वो
तुम गंभीर कब हो गए?
वो हर रोज़ का मिलना और साथ मिलकर खाना
कभी तुम्हारा रुठ जाना और हमारा मनाना
एक दिनचर्या ही तो थी!!!
मुझे नहीं पता वो हर रोज़ की बातें
एक चलन कब से हो गए?
ये दोस्ती का रिश्ता कैसा है?
ये मै नहीं समझता
ये मेरा, ये तुम्हारा
कभी कोई नहीं करता है
तुम समझाते हो, मैं समझता हूँ
फिर बाद मे कभी वही गलती करता हूँ
मुझे नहीं पता, जो सिखाया वो कब सीख पाऊंगा
ऐ दोस्त, कुछ हो न हो पर दोस्ती जरूर निभाउंगा...
All Writing.Com images are copyrighted and may not be copied / modified in any way. All other brand names & trademarks are owned by their respective companies.
Generated in 0.22 seconds at 5:37pm on Apr 26, 2024 via server web1.